सौरमण्डल में पृथ्वी
29 Jan, 2022
- सूर्य, चंद्रमा तथा वे सभी वस्तुएँ जो रात के समय आसमान में चमकती हैं, खगोलीय पिंड
कहलाती हैं। इन्हें आकाशीय पिंड भी कहा जाता है।
- कुछ खगोलीय पिंड आकार में बड़े तथा गर्म होते हैं। ये गैसों से बने होते हैं। इनके पास अपनी
ऊष्मा तथा प्रकाश होता है, जिसे वे बहुत बड़ी मात्र में उत्सर्जित करते हैं। इन खगोलीय पिंडों
को तारा कहते हैं। सूर्य भी एक तारा है।
- सूर्य के अत्यधिक तेज प्रकाश के कारण रात के समय चमकने वाली वस्तुओं को हम दिन में
नहीं देख पाते हैं। रात्रि के समय आसमान में तारों के विभिन्न समूहों द्वारा बनाई गई विविध
आकृतियों को नक्षत्रमंडल कहा जाता है।
- अर्सा मेजर या बिग बीयर इसी प्रकार का एक नक्षत्रमंडल है। बहुत आसानी से पहचान में आने
वाला नक्षत्रमंडल है, स्मॉल बीयर या सप्तट्टषि (सप्त-सात, ट्टषि-संत)। यह सात तारों का समूह
है, जो एक बड़े नक्षत्रमंडल अर्सा मेजर का भाग है।
- लाखों तारों के समूह को आकाशगंगा (मिल्की-वे) कहा जाता है। हमारा सौरमंडल इस
आकाशगंगा का एक भाग है।
- आकाशगंगा करोड़ों तारों, बादलों तथा गैसों की एक प्रणाली है। इस प्रकार की लाखों
आकाशगंगाएँ मिलकर ब्रह्मांड का निर्माण करती हैं।
- सभी मंदाकिनी तारों के विशाल पुंज है। ये पुंज इतने विशाल हैं कि कुछ लोग इन्हें ब्रह्मांड
के प्रायद्वीप कहते हैं। समस्त ब्रह्मांड में मंदाकिनी फैली होती है।
- हमारी मंदाकिनी सर्पिल मंदाकिनी है। इसकी सर्पिल भुजाएं दूर-दूर तक फैली है, और इन्हीं
भुजाओं में से एक में हमारा सौरमंडल स्थित है। मंदाकिनी व्यास में लगभग 100,000 प्रकाश
वर्ष (30,600 PC) है।
ब्रह्माण्ड:
- ब्रह्माण्ड के नियमित अध्ययन का प्रारम्भ क्लाडियस टॉल्मी द्वारा (140 ई. में) हुआ।
- टॉल्मी के अनुसार पृथ्वी, ब्रह्माण्ड के केन्द्र में है तथा सूर्य और अन्य ग्रह इसकी परिक्रमा
करते हैं। इसे ही सेण्ट्रिक संकल्पना कहते हैं।
- 1573 ई. में कॉपरनिकस ने पृथ्वी के बदले सूर्य को केन्द्र में स्वीकार किया। इसे
हेलियोसेण्ट्रिक संकल्पना के नाम से जाना जाता है।
- कुछ खगोलीय पिंडों में अपना प्रकाश एवं ऊष्मा नहीं होती है। वे तारों के प्रकाश से प्रकाशित
होते हैं। ऐसे पिंड ग्रह कहलाते हैं।
- ग्रह जिसे अंग्रेजी में प्लेनेट कहते हैं ग्रीक भाषा के प्लेनेटाइ शब्द से बना है जिसका अर्थ होता
है परिभ्रमक अर्थात् चारों ओर घूमने वाले।
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की वैज्ञानिक परिकल्पनाएं:
- बिग बैंग सिद्धांत- जार्ज लिमैत्रे
- निरंतर उत्पत्ति का सिद्धान्त- थामॅस गोल्ड और हमैन बॉण्डी
- संकुचन विमोचन का सिद्धान्त- डॉ- एलेन सैण्डिज
प्रकाश वर्ष:
- प्रकाश वर्ष वह दूरी है, जिसे प्रकाश शून्य में 29,7925 किमी. प्रति से. या लगभग 186282
मील प्रति से. की गति से तय करता है।
- इस गति से केन्द्र के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में सूर्य को 25 करोड़ वर्ष लगते हैं।
यह अवधि ब्रह्माण्ड वर्ष कहलाती है।
- पृथ्वी, जिस पर हम रहते हैं, एक ग्रह है। यह अपना संपूर्ण प्रकाश एवं ऊष्मा सूर्य से प्राप्त
करती है, जो पृथ्वी के सबसे नज़दीक का तारा है।
- पृथ्वी को बहुत अधिक दूरी से, जैसे चंद्रमा से देऽने पर, यह चंद्रमा की तरह चमकती हुई प्रतीत
होगी।
- आसमान में दिऽने वाला चंद्रमा एक उपग्रह है। यह हमारी पृथ्वी का सहचर है तथा इसके चारों
ओर चक्कर लगाता है।
- पूर्ण चंद्र को लगभग एक महीने में एक बार देऽ सकते हैं। यह पूर्ण चंद्रमा वाली रात या
पूर्णिमा होती है। पंद्रह दिन के बाद आप इसे नहीं देऽ सकते। यह नये चंद्रमा की रात्रि या
अमावस्या होती है।
ब्लैक होल
- सूर्य से भी तीन गुने विशाल तारों के समाप्त होने पर अंतरिक्ष के कुछ काले क्षेत्र बच जाते हैं
जिन्हें ब्लैक होल कहते है।
- इनका गुरुत्वाकर्षण बल इतना अधिक होता है कि कोई भी वस्तु जो ब्लैक होल में चली
जाती है, बाहर नहीं आ सकती।
- यहां तक कि प्रकाश भी गुरूत्वाकर्षण के कारण बाहर नहीं आ पाता। सन् 1972 में सबसे
पहले ब्लैक होल की पहचान की गई थी। यह सिग्नल एक्स-1 के दुहरे तारे में था।
- यह उसका एक छोटा साथी है जो बिल्कुल काला है। यह न्यूट्रॉन तारा नहीं है, इसलिए इनको
ब्लैक होल कहते हैं।
- ब्लैक होल से एक्स किरणें और अवरक्त विकिरण निकलती हैं। इन्हीं विकिरणों के आधार पर
अंतरिक्ष में ब्लैक होलों का पता लगाया जाता है। ब्लैक होलों का द्रव्यमान 10 करोड़ सूर्य के
बराबर तक हो सकता है।
महाविस्फोट या बिग बैंग परिकल्पना:
- इस परिकल्पना में ब्रह्मांड, तारे, सूर्य आदि की उत्पत्ति बताई गई है।
- 20 अरब वर्ष पूर्व आद्य पदार्थ या आदिकालिक पदार्थ से निर्मित एक विशालकाय आग के
गोले के भीतर महाविस्फोट हुआ और ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई।
- तब से इसका निरंतर प्रसार होता जा रहा है। विस्फोट के फलस्वरूप अति सघन पिंड छिन्न-
भिन्न होकर अंतरिक्ष में छिटक गया, जहाँ इसके अंश अभी तक हजारों किलोमीटर प्रति
सेकेण्ड की दर से गतिमान हैं।
परिकल्पना के कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दू :
- ब्रह्मांड के विस्तार की दर समय के साथ घटेगी, क्योंकि आकाशगंगाओं की ऊर्जा का क्रमशः
”ास होता जाएगा।
- एडविन हब्बल (Edwin Habbal) ने भी आकाशगंगाओं का निरीक्षण कर बताया है कि वे एक-
दूसरे से दूर जा रहे हैं। सिद्धांततः यदि प्रक्रिया उलट दी जाए तो वे एक केंद्र पर एकत्र होकर
महाविस्फोट कर सकती हैं।
- यह महाविस्फोट (बिग बैंग) सिद्धांत बताता है कि अरबों वर्ष पूर्व घने आदिकालिक पदार्थों के
एक केंद्र पर एकत्र होने से महाविस्फोट के फलस्वरूप सृष्टि की रचना हुई।
- केंद्र में दाब और तापमान के बढ़ने से आणविक प्रतिक्रियाएँ आंरभ हुई। हाइड्रोजन का संलग्न
हीलियम में होने पर भारी मात्र में ऊर्जा विमुक्त हुई और गैसों का विस्फोट हुआ। विस्फोट से
अभिनव तारों की उत्पत्ति हुई।
तारे:
- हम तारों के कुछ नजदीक पहुंच जाएं तो वे भी सूर्य की भांति दिऽाई देंगे। तारे चमकते हुए
गैस के विशाल पिंड है।
- रीगल, नीले सफेद दानव का व्यास सूर्य से 80 गुना अधिक है, इसकी चमक सूर्य की अपेक्षा
60,000 गुना अधिक है।
- तारों का निर्माण आकाश गंगा में गैस के बादलों से होता है। तारों से निरन्तर ऊर्जा का
उत्सर्जन होता है।
- गैलेक्सी का 98 प्रतिशत भाग तारों से निर्मित है। ये गैसीय द्रव्य के उष्ण एवं दीप्तिमान
ब्रह्माण्ड में स्थित खगोलीय पिण्ड हैं। सूर्य भी तारा है जो पृथ्वी के सबसे निकटतम है।
- साइरस पृथ्वी से देखा जाने वाला सर्वाधिक चमकीला तारा है।
- वामन तारा वे तारे हैं, जिनकी ज्योत्सना सूर्य से कम है।
- विशाल तारों की ज्योत्सना सूर्य से अधिक है जैसे-बेटेलगीज, सिरियस, अंतारिस। सुपरनोवा
तारा 20 से अधिक चमकने वाला तारा है।
- ब्लैक होल बनने का कारण है- तारों की ऊर्जा समाप्त हो जाना। प्रत्येक तारा लगातार ऊर्जा
की बड़ी मात्र में उत्सर्जन करता रहता है और निरंतर सिकुड़ता जाता है जिसके कारण
गुरुत्वाकर्षण बढ़ता जाता है।
- इस ऊर्जा उत्सर्जन के कारण अंत एक समय आता है, जब ऊर्जा समाप्त हो जाती है और
तारों का बहना रुक जाता है।
- यदि तारे का भार सूर्य के लगभग बराबर होता है तो यह धीरे-धीरे ठण्डा होकर पहले गोले में
बदलता है फिर और ठण्डा होकर अंत में एक श्वेत छोटे पिण्ड में परिवर्तित हो जाता है।
- कुछ समय पश्चात् यह छोटा पिण्ड अपने ऊपर गिरने वाले प्रकाश को अवशोषित करने लगता
है। तब यह आंखों से न दिखने वाले ब्लैक होल में बदल जाता है।
- नीले तारों का तापमान 27,750°c तथा सूर्य का 6000°c होता है। इसलिए कोई भी अंतरिक्ष
यात्री कभी भी किसी भी तारे पर नहीं उतर सकता।
- सभी तारों का जन्म गैस और धूल के बादलों में हुआ है। सभी तारों में संलग्न क्रियाओं से
प्रकाश और गर्मी पैदा होती है।
सौरमंडल
- सूर्य, आठ ग्रह, उपग्रह तथा कुछ अन्य खगोलीय पिंड, जैसे क्षुद्र ग्रह एवं उल्कापिंड मिलकर
सौरमंडल का निर्माण करते हैं, जिसका प्रमुख सूर्य है।
सूर्य
- सूर्य सौरमंडल के केंद्र में स्थित है। यह बहुत बड़ा एवं अत्यधिक गर्म गैसों से बना है। इसका
खींचाव बल ही इसे सौरमंडल को आपस में बाँधे रखता है। हमारी पृथ्वी से यह 10 लाख गुना
बड़ा है।
- सूर्य, सौरमंडल के लिए प्रकाश एवं ऊष्मा का एकमात्र ड्डोत है। लेकिन हम इसकी अत्यधिक
तेज ऊष्मा को महसूस नहीं करते हैं, क्योंकि सबसे नजदीक का तारा होने के बावजूद यह हमसे
बहुत दूर है।
- सूर्य पृथ्वी से लगभग 15 करोड़ किलोमीटर दूर है। प्रकाश की गति लगभग 3 लाख किमी-
प्रति- सेकैड है। सूर्य का प्रकाश लगभग 8 मिनट में पृथ्वी पर पहुँचता है।
- पौराणिक रोमन कहानियों में ‘सोल’ सूर्य देवता को कहा जाता है। ‘सौर’ शब्द का अर्थ है, सूर्य से
संबंधित। इसीलिए सूर्य के परिवार को ‘सौरमण्डल’ कहा जाता है।
क्वासर:
- क्वासर शब्द क्वासी स्टैलर रेडियो सोर्सेज का संक्षिप्त रूप है। क्वासर एक तारे की तरह
दिखाई देते हैं।
- अवरक्त विस्थापन, प्रकाश स्रोत के दूर जाने को दर्शाता है।
- क्वासर से हमें प्रकाश के साथ रेडियों तरंगे और एक्स किरणें भी मिलती हैं।
- एक क्वासर का आकार हमारी मंदाकिनी का 1,100,000वां हिस्सा होता है, इसकी चमक 100-
200 गुना अधिक होती है। अभी तक 1500 क्वासरों की खोज की जा चुकी है।
पल्सर:
- पल्सर, घूर्णन करते हुए ऐसे तारे हैं, जिनसे नियमबद्ध रूप से विकिरण स्पंद आते रहते हैं।
- जब किसी बड़े तारे में विस्फोट होता है तो उसका बाहरी भाग छिटककर नेबुला का रूप धारण
कर लेता है और क्रोड घटकर छोटा सघन तारा बन जाता है जिसे न्यूट्रान तारा कहते है।
- रेडियो दूरबीन पर पल्सर से आता किरणपुंज टिक जैसी आवाज पैदा करता है। तेजी से घूमते
हुए ये न्यूट्रॉन तारे अंतरिक्ष में लाइट हाउसों की तरह है। साधारण पल्सरों की फ्रलेश के बीच
का अंतराल 1 या 1/2 सेकेण्ड होता है।
- अति तीव्रता से स्पंदन करने वाला पल्सर एनपी 0532 है, जो क्रेब नेबुला में स्थित है। यह 1
सेकंड में 30 बार स्पंदन करता है।
- सामान्यतः पल्सरों को प्रकाशीय दूरबीन से नहीं देखा जा सकता। इन्हें खोजने के लिए रेडियो
दूरबीनों की आवश्यकता होती है। केवल दो पल्सर ऐसे हैं जिन्हें प्रकाशीय दूरबीनों से देखा जा
सकता है।
ग्रह
- हमारे सौरमंडल में आठ ग्रह हैं। सूर्य से दूरी के अनुसार, वे हैं। बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति,
शनि, यूरेनस तथा नेप्च्यून।
- सौरमंडल के सभी आठ ग्रह एक निश्चित पथ पर सूर्य का चक्कर लगाते हैं। इनके परिकमा
पथ दीर्घवृत्ताकार हैं जिन्हें कक्षा कहते हैं।
- परिक्रमा करते हुए उन सबकी दिशा एक ही रहती है सभी ग्रह अपने अक्ष पर घूमते हैं। शुक्र
और यूरेनस को छोड़कर सभी ग्रहों के घूर्णन व परिक्रमण की एक ही दिशा रहती है।
OLD NCERT:
- ग्रहों द्वारा प्राप्त ऊष्मा की मात्र ग्रह की सूर्य से दूरी पर निर्भर करती है। बुध सूर्य के सबसे
निकट है। इसीलिए उसे सूर्य से सबसे अधिक गर्मी मिलती है। सूर्य से सबसे अधिक दूरी
नेप्च्यून की है। इसीलिए यह सौर परिवार का सबसे ठंडा ग्रह है।
- सूर्य की ऊष्मा केवल 10 प्रतिशत बढ़ या घट जाये तो पृथ्वी का अधिकांश भाग एक गर्म
मरुस्थल या बर्फीले ठंडे मरुस्थल में बदल जायेगा।
- बुध सूर्य के सबसे नजदीक है। अपनी कक्षा में सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाने में इसे
केवल 88 दिन लगते हैं।
- शुक्र को पृथ्वी का जुड़वाँ ग्रह माना जाता है, क्योंकि इसका आकार एवं आकृति लगभग पृथ्वी
के ही समान है।
- अभी तक प्लूटो भी एक ग्रह माना जाता था। परन्तु ‘अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संगठन’ ने अपनी
बैठक (अगस्त, 2006) में इसे ग्रहों की श्रेणी से हटा दिया एवं बौने ग्रह की श्रेणी में रख दिया।
- बृहस्पति, शनि तथा यूरेनस के चारों ओर छल्ले हैं। ये छल्ले विभिन्न पदार्थों के असंख्य छोटे-
छोटे पिंडों से बनी पट्टियाँ हैं।
ग्रहों से सम्बंधित तथ्य:
ग्रह |
सूर्य से औसत दूरी (दस लाख किमी.) में |
परि क्रमण |
बुध (Mercury) |
58 |
88 दिन |
शुक्र (Venus) |
108 |
225 दिन |
पृथ्वी (Earth) |
150 |
365.25 दिन |
मंगल (Mars) |
228 |
687 दिन |
बृहस्पति (Jupiter) |
778 |
12 वर्ष |
शनि (Saturn) |
1427 |
29.5 वर्ष |
अरुण (Uranus) |
2869 |
84 वर्ष |
वरुण (Neptune) |
4498 |
165 वर्ष |
पृथ्वी
- सूर्य से दूरी के हिसाब से पृथ्वी तीसरा ग्रह है। आकार में, यह पाँचवाँ सबसे बड़ा ग्रह है।
- यह ध्रुवों के पास थोड़ी चपटी है। इसके इसी आकार के कारण इसे भू-आभ (ळमवपक) कहा
जाता है। भू-आभ का अर्थ है, पृथ्वी के समान आकार।
- पृथ्वी न तो अधिक गर्म है और न ही अधिक ठंडी। यहाँ पानी एवं वायु उपस्थित है, जो हमारे
जीवन के लिए आवश्यक है।
- वायु में जीवन के लिए आवश्यक गैसें, जैसे ऑक्सीजन मौजूद है। इन्हीं कारणों से, पृथ्वी
सौरमंडल का सबसे अद्भुत ग्रह है।
- अंतरिक्ष से देखने पर पृथ्वी नीले रंग की दिखाई पड़ती है, क्योंकि इसकी दो-तिहाई हिस्सा पानी
से ढँका हुई है। इसीलिए इसे, नीला ग्रह कहा जाता है।
- प्रकाश की गति लगभग 300000 किमी-/सेकेंड है। इस गति के बावजूद सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी
तक पहुंचने में लगभग 8 मिनट का समय लगता है।
चंद्रमा
- हमारी पृथ्वी के पास केवल एक उपग्रह है, चंद्रमा। इसका व्यास पृथ्वी के व्यास का केवल एक-
चौथाई है। यह पृथ्वी से लगभग 3,84,400 किलोमीटर दूर है।
- चंद्रमा पृथ्वी का एक चक्कर लगभग 27 दिन में पूरा करता है। लगभग इतने ही समय में यह
अपने अक्ष पर एक चक्कर भी पूरा करता है। इसके परिणामस्वरूप पृथ्वी से हमें चंद्रमा का
केवल एक ही भाग दिखाई पड़ता है।
- नील आर्मस्ट्रांग पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 29 जुलाई 1969 को सर्वप्रथम चंद्रमा की सतह पर
कदम रखा।
- इसकी सतह पर पर्वत, मैदान एवं गड्ढ़े हैं जो चंद्रमा की सतह पर छाया बनाते हैं। पूर्णिमा के
दिन चंद्रमा पर इनकी छाया को देखा जा सकता है।
- उपग्रह एक खगोलीय पिंड है, जो ग्रहों के चारों ओर उसी प्रकार चक्कर लगाता है, जिस प्रकार
ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं।
- मानव-निर्मित उपग्रह एक कृत्रिम पिंड है। यह वैज्ञानिकों के द्वारा बनाया गया है, जिसका
उपयोग ब्रह्मांड के बारे में जानकारी प्राप्त करने एवं पृथ्वी पर संचार माध्यम के लिए किया
जाता है। इसे रॉकेट के द्वारा अंतरिक्ष में भेजा जाता है एवं पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर
दिया जाता है। अंतरिक्ष में उपस्थित कुछ भारतीय उपग्रह इनसेट, आई-आर-एस- एडूसैट
इत्यादि हैं।
ग्रह और उनके उपग्रह:
ग्रह |
उपग्रह |
मंगल |
फोबोस, डीमोस |
पृथ्वी |
चंद्रमा |
बृहस्पति |
गैनिमीड, यूरोपा इयो, कैलिस्टो, मेटिस, थेबे |
अरूण |
मिरांडा, जूलियट |
नेटच्यून |
ट्राइटन |
शनि |
टाइटन, टेथिस एटलस, पण्डोरा |
क्षुद्र ग्रह
- तारों, ग्रहों एवं उपग्रहों के अतिरिक्त, असंख्य छोटे पिंड भी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं।
इन पिंडों को क्षुद्र ग्रह कहते हैं।
- ये मंगल एवं बृहस्पति की कक्षाओं के बीच पाए जाते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार क्षुद्र ग्रह, ग्रह के
ही भाग होते हैं, जो कि बहुत वर्ष पहले विस्फोट के बाद ग्रहों से टूटकर अलग हो गए।
क्षुद्रग्रह:
- सूर्य से इनकी दूरी 2.2-3.3 au है। ये भी सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं।
- मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच की पट्टी में 40,000 से 50,000 तक क्षुद्रग्रह हैं। इनमें से
अधिकांश इतने छोटे हैं कि प्रचलित तरीकों से उनका व्यास भी नहीं मापा जा सकता।
- इनमें सबसे बड़ा सेरेज है, जिसका व्यास 1003 से 1040 किमी. है। इसकी खोज सन् 1801 में
हुई थी।
- केवल एक ही क्षुद्रग्रह ऐसा है, जो बिना दूरबीन के दिखाई पड़ता है, वह है 4 वेस्ता, जिसका
व्यास 555 किमी. है। जिस क्षुद्रग्रह की दूरी पृथ्वी के सबसे निकट आने पर मापी गई, वह है
हमीज।
धूमकेतु:
- धूमकेतु ऐसे ऽगोलीय पिंड हैं, जिनकी धुएं जैसी लंबी चमकदार पूँछ होती है। इनको पुच्छल
तारा भी कहते है। धूमकेतु सौर परिवार के अनेक आकाशीय पिंडों की तरह है। पृथ्वी की
भांति इनका भी एक निश्चित पथ है, लेकिन इनका आकार भिन्न होता है।
- 100 वर्ष में लगभग 1000 धूमकेतु होते हैं, जिन्हे बगैर दूरबीन के देखा जा सकता है। हेली
धूमकेतु इनमें सबसे प्रसिद्ध है, जो 76 वर्ष बाद सूर्य के पास से गुजरता है।
- इसको सबसे पहले इंग्लैण्ड के खगोलविद् एडमंड हेली ने सन् 1682 में देखा था। उन्हीं के
नाम पर इसे हेली धूमकेतु कहा गया।
- धूमकेतु के तीन भाग होते है। नाभि, सिर, तथा पूंछ। नाभि धूमकेतु के सिर का सबसे
चमकीला भाग है। नाभि का व्यास 100-10,000 मीटर तक हो सकता है। हेली धूमकेतु की
नाभि का व्यास लगभग 5,000 मीटर है।
- अमोनिया, धूल, गैस जैसे अनेक तत्त्वों से बनी बर्फ की यह दूषित गेंद नाभि कहलाती है।
- प्रकाश को प्रतिबिंबित करती हुए सिर के केंद्र से चमकती हुई दिखाई देती है। नाभि के चारों
ओर के भाग को सिर कहते हैं। यह गैस और धूल से बना होता है, जिसका व्यास 2000,000
लाख किमी. से भी अधिक हो सकता है। सिर हाइड्रोजन गैस के बादलों से घिरा रहता है। पूंछ
धूमकेतु का खास भाग है।
- धूमकेतु की पूंछ दो प्रकार की होती है। डस्ट टेल जो दस लाऽ से एक करोड़ किमी. लंबी होती
है तथा प्लाज्मा टेल यानी अत्यंत गर्म आयोनाइज्ड गैस की पूंछ जो दस करोड़ किमी. लंबी
होती है।
- धूमकेतु की पूंछ तभी बनती है, जब वह सूर्य के नजदीक आ जाता है। सूर्य का प्रकाश उनके
सिर की कुछ गैस को ढकेलता है और यही गैस, पूंछ की तरह चमकने लगती है।
- जैसे ही यह सूर्य के पास आता है, बड़ी तेजी से चक्कर काटते हुए अपनी पूंछ को आगे करते
हुए सूर्य से दूर चला जाता है।
- धूमकेतु की पूंछ हमेशा सूर्य की विपरीत दिशा में होती है।
उल्कापिंड
- सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले पत्थरों के छोटे-छोटे टुकड़ों को उल्कापिंड कहते हैं। कभी-
कभी ये उल्कापिंड पृथ्वी के इतने नजदीक आ जाते हैं कि इनकी प्रवृत्ति पृथ्वी पर गिरने की
होती है। इस प्रक्रिया के दौरान वायु के साथ घर्षण होने के कारण ये गर्म होकर जल जाते हैं।
- फलस्वरूप, चमकदार प्रकाश उत्पन्न होता है। कभी-कभी कोई उल्का पूरी तरह जले बिना पृथ्वी
पर गिरती है जिससे धरातल पर गड्ढे बन जाते हैं।
उल्का और उल्कापिंड:
- कभी-कभी रात के समय आकाश में कोई चमकता बिंदु, चमकीली रेखा खींचता हुआ गायब हो
जाता है। इसे सामान्यतः तारा टूटना कहते है। लेकिन तारे तो कभी नहीं टूटते। टूटकर गिरने
वाले ये पिंड उल्काएं होती हैं। ये बहुत तीव्र गति से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं और
हवा में रगड़ खाकर जल उठते हैं।
- चंद्रमा, मंगल और बुध ग्रहों पर उल्कापिंडों के गिरने से ही गड्ढे निर्मित हुए हैं। पृथ्वी पर
सबसे बड़ा गड्ढा जो उत्तरी ऐरिजोना में है, शायद उल्कापिंड के टकराने से बना।
- एक साधारण उल्का को भाप बनने में लगभग एक सेकेण्ड का समय लगता है। हर साल
लगभग 500 उल्कापिंड पृथ्वी की सतह पर गिरते हैं।
- उल्का पिंड तीन प्रकार के होते है। धूमकेतु जैसे, पत्थर जैसे और आग की गेंदनुमा आकृति
जैसे। अधिकांश उल्कापिंड पत्थर, लोहा, निकेल और दूसरे तत्त्वों से मिलकर बने हैं।
ग्रहों से संबंधित मुख्य विशेषताएं:
- सर्वाधिक बड़ा ग्रह - बृहस्पति
- सर्वाधिक छोटा ग्रह - बुध
- सर्वाधिक गर्म तथा सूर्य के सबसे नजदीक ग्रह - बुध
- सर्वाधिक ठंडा तथा सर्वाधिक दूर ग्रह - नेप्च्यून
- सर्वाधिक चमकीला ग्रह - शुक्र
- सौर मण्डल का सबसे बड़ा उपग्रह - गैनिमीड
- वे ग्रह, जिनके उपग्रहों की संख्या शून्य है - बुध व शुक्र
- वह ग्रह, जिसके उपग्रहों की संख्या एक है - पृथ्वी
- बुध एवं शुक्र हीन या क्षुद्र ग्रह हैं।
- बुध, शुक्र पृथ्वी व मंगल - आन्तरिक ग्रह हैं।
- बृहस्पति, शनि, यूरेनस, व नेप्चून - बाह्य ग्रह हैं
अभ्यास प्रश्न
Q.1
निम्नलिखित में से कौन-से खगोलीय पिंड हैं?
- पृथ्वी
- सूर्य
- चंद्रमा
- उल्का पिंड
कूट:
- केवल 1 और 2
- केवल 2 और 2
- केवल 3 और 4
- उपुर्यक्त सभी
Q.2
किन खगोलीय पिंडों को तारा कहते हैं?
- जिनके पास अपनी ऊष्मा तथा प्रकाश होता है।
- जिनके पास अपनी ऊष्मा तथा प्रकाश नहीं होता है।
- जो अपने अक्ष में घूमते हुए दूसरे पिंड की परिक्रमा करते हैं।
- जो आकार में बहुत बड़े होते हैं।
Q.3
तारों के विभिन्न समूहों के द्वारा बनाई गई विविध आकृतियां क्या कहलाती है?
- आकाश गंगा
- नक्षत्रमंडल
- एंड्रोमीडा
- सौरमंडल
Q.4
अंतरिक्ष से संबंधित ‘अर्सा मेजर’ या बिग बीयर का संबंध किससे है?
- नक्षत्रमंडल
- सौरमंडल
- क्षुद्र ग्रह समूह
- इनमें से कोई नहीं
Q.5
किन खगोलीय पिंडों को ‘ग्रह’ कहा जाता है?
- जो आकार में बहुत बड़े हों।
- जिनके पास अपनी ऊष्मा तथा प्रकाश होता है।
- जिनके पास अपनी ऊष्मा एवं प्रकाश नहीं होता एवं जो तारों के प्रकाश से प्रकाशित
होते हैं।
- जिनका अपना गुरुत्वाकर्षण बल होता है।
Q.6
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- पृथ्वी एक ग्रह है तथा यह अपना संपूर्ण प्रकाश एवं ऊष्मा सूर्य से प्राप्त करती है।
- पृथ्वी सूर्य से दूरी के हिसाब से चौथा ग्रह तथा आकार में तीसरा बड़ा ग्रह है।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
- केवल 1
- केवल 2
- 1 और 2 दोनों
- न तो 1 और न ही 2
Q.7
सूर्य से बढ़ती दूरी के आधार पर ग्रहों का सही क्रम चुनिये:
- शुक्र - मंगल - पृथ्वी - बुध
- बुध - श्ाुक्र - मंगल - पृथ्वी
- बुध - शुक्र - पृथ्वी - मंगल
- बुध - मंगल - शुक्र - पृथ्वी
Q.8
नीचे दिये गये ग्रहों में से कौन-से आंतरिक ग्रह हैं?
- बुध
- शुक्र
- मंगल
- बृहस्पति
कूट:
- 1, 2 एवं 3
- 1, 2 एवं 4
- 2, 3 एवं 4
- उपर्युक्त सभी
Q.9
नीचे दिये गए ग्रहों में से कौन-से बाह्य ग्रह हैं?
- बृहस्पति
- नेप्च्यून (वरुण)
- शनि
- यूरेनस (अरुण)
कूट:
- 1, 2 और 3
- 2, 3 और 4
- 1, 3 और 4
- उपर्युक्त सभी
Q.10
निम्नलिखित में से किस ग्रह का परिक्रमण काल सबसे कम है?
- मंगल
- बुध
- बृहस्पति
- शनि
उत्तर
- (d)
- (a)
- (b)
- (a)
- (c)
- (a)
- (c)
- (a)
- (d)
- (b)