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चर्चा में क्यों ?

  • हाल ही में अमेरिकी शोध संगठन हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट (एचईआइ) के स्टेट आफ ग्लोबल एयर इनिशिएटिव की बोस्टन में जारी एक रिपोर्ट में प्रदूषण को लेकर चिंताजनक तस्वीर सामने आई है।

मुख्य बिंदु :-

  • एयर क्वालिटी एंड हेल्थ इन सिटीज नाम की इस रिपोर्ट में दुनिया भर के 7,000 से अधिक शहरों के लिए वायु प्रदूषण और वैश्विक स्वास्थ्य प्रभावों का व्यापक विश्लेषण पेश किया गया है।
  • इसमें दो सबसे हानिकारक प्रदूषकों फाइन पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) व नाइट्रोजन डाइआक्साइड (एनओ2) को केंद्र में रखकर प्रदूषण की हालत बताई गई है।
  • इसमें दिल्ली और कोलकाता के बाद नाइजीरिया का कानो शहर दुनिया में तीसरे स्थान पर है। बांग्लादेश की राजधानी ढाका पांचवें, पाकिस्तान का कराची शहर आठवें और चीन की राजधानी बीजिंग नौवें स्थान पर है।
  • दुनिया के सात हजार शहरों में राजधानी दिल्ली की हवा सर्वाधिक जहरीली है। देश के दूसरे शहरों की हालत भी अच्छी नहीं है। कोलकाता दूसरे स्थान पर है। वायु प्रदूषण के कारण 2019-20 में प्रति एक लाख आबादी पर दिल्ली में 106 और व कोलकाता में 99 लोगों की मौत हुई है। 

जनस्वास्थ्य पर सबसे अधिक प्रभाव-

  • अध्ययन के अनुसार 2019-20 में हुए 7,239 शहरों में पीएम 2.5 से जुड़ी 17 लाख मौतें हुईं। एशिया, अफ्रीका और पूर्वी और मध्य यूरोप के शहरों में इसकी वजह से जनस्वास्थ्य पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा।
  • वर्ष 2010-11 से 2019-20 के आंकड़ों के अध्ययन में पाया गया कि दो प्रमुख वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने के वैश्विक पैटर्न आश्चर्यजनक रूप से भिन्न हैं। निम्न व मध्यम आय वाले देशों में पीएम 2.5 प्रदूषण का जोखिम अधिक होता है, वहीं एनओ2 उच्च-आय के साथ-साथ निम्न और मध्यम वर्गीय शहरों में भी एक खतरा होती है।
  • रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में वायु प्रदूषण नौ मौतों में से एक के लिए और 2019 में 67 लाख मौतों के लिए जिम्मेदार है। युवाओं, बुजुर्गों और पुरानी श्वसन व हृदय रोगों वाले लोगों पर इसका दुष्प्रभाव ज्यादा है। 

निम्न और मध्यम आय वाले देशों में आंकड़ों की अनुपलब्धता पर चिंता :

  • रिपोर्ट में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में आंकड़ों की अनुपलब्धता पर चिंता जताई गई है। डब्ल्यूएचओ के वायु गुणवत्ता डेटाबेस के अनुसार वर्तमान में केवल 117 देशों के पास पीएम 2.5 को ट्रैक करने के लिए जमीनी स्तर की निगरानी प्रणाली है और केवल 74 राष्ट्र एनओ2 स्तर की निगरानी कर रहे हैं। 
  • शहरी आबादी सर्वाधिक चपेट में एनओ2 मुख्य रूप से पुराने वाहनों, बिजली संयंत्रों, औद्योगिक सुविधाओं और आवासीय खाना पकाने और हीटिंग में अक्सर ईंधन के जलने से आता है। चूंकि शहर के निवासी घनी यातायात वाली व्यस्त सडकों के करीब रहते हैं, इसलिए वे अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों की तुलना में अधिक एनओ2 प्रदूषण के संपर्क में आते हैं।
  • 2019-20 में, इस रिपोर्ट में शामिल 7,000 से अधिक शहरों में से 86 प्रतिशत ने एनओ2 के लिए डब्ल्यूएचओ के 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के मानक को पार कर लिया, जिससे करीब 260 करोड़ लोग प्रभावित हुए। 
  • वरिष्ठ विज्ञानी पल्लवी पंत के अनुसार जैसे-जैसे दुनियाभर के शहर तेजी से बढ़ रहे हैं. लोगों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का प्रभाव भी बढ़ने का खतरा है। लिहाजा खतरेको कम करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिएशुरुआती कदम उठाने कीजरूरत है।

Source – TH