क्या, कब, कहाँ और कैसे
29 Jan, 2022
आंरभिक लोगों का निवास
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लाखों वर्ष पहले से लोग नदी के तट पर रह रहे हैं। यहाँ रहने वाले आरंभिक लोगों में से कुछ
कुशल संग्राहक थे जो आस-पास के जंगलों की विशाल संपदा से परिचित थे।
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भोजन के लिए वे जड़ों, फलों तथा जंगल के अन्य उत्पादों का यहीं से संग्रह किया करते थे।
जानवरों का आखेट (शिकार) भी करते थे।
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उत्तर-पश्चिम की सुलेमान और किरथर पहाड़ियों में कुछ ऐसे स्थान हैं जहाँ लगभग आठ हजार वर्ष
पूर्व स्त्री-पुरुषों ने सबसे पहले गेहूँ तथा जौ जैसी प़्ाफ़सलों को उपजाना आरंभ किया।
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भेड़, बकरी और गाय-बैल जैसे पशुओं को पालतू बनाना शुरू किया। ये लोग गाँवों में रहते थे। उत्तर-
पूर्व में गारो तथा मध्य भारत में विध्य पहाड़ियों का पता लगाओ। कुछ अन्य ऐसे क्षेत्र थे जहाँ
कृषि का विकास हुआ। जहाँ सबसे पहले चावल उपजाया गया वे स्थान विध्य के उत्तर में स्थित थे।
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लगभग 4700 वर्ष पूर्व नदियों के किनारे कुछ आरंभिक नगर फले-फूले। गंगा व इसकी सहायक
नदियों के किनारे तथा समुद्र तटवर्त्ती इलाकों में नगरों का विकास लगभग 2500 वर्ष पूर्व हुआ।
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गंगा के दक्षिण में इन नदियों के आस-पास का क्षेत्र प्राचीन काल में ‘मगध’ (वर्तमान बिहार में)
नाम से जाना जाता था। इसके शासक बहुत शक्तिशाली थे और उन्होंने एक विशाल राज्य स्थापित
किया था। देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसे राज्यों की स्थापना की गई थी। लोगों ने सदैव
उपमहाद्वीप के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक यात्र की।
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कभी-कभी हिमालय जैसे ऊँचे पर्वतों, पहाड़ियों, रेगिस्तान, नदियों तथा समुद्र के कारण यात्र जोखिम
भरी होती थी, फिर भी ये यात्र उनके लिए असंभव नहीं थीं।
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कभी लोग काम की तलाश में तो कभी प्राकृतिक आपदाओं के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान
जाया करते थे। कभी-कभी सेनाएँ दूसरे क्षेत्रें पर विजय हासिल करने के लिए जाती थीं।
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व्यापारी कभी कापि़्ाफ़ले में तो कभी जहाजों में अपने साथ मूल्यवान वस्तुएँ लेकर एक स्थान से
दूसरे स्थान जाते रहते थे।
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धार्मिक गुरू लोगों को शिक्षा और सलाह देते हुए एक गाँव से दूसरे गाँव तथा एक कसबे से दूसरे
कसबे जाया करते थे। कुछ लोग नए और रोचक स्थानों को खोजने की चाह में उत्सुकतावश भी
यात्र किया करते थे।
देश के नाम
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देश के लिए हम प्रायः इण्डिया तथा भारत जैसे नामों का प्रयोग करते हैं। इण्डिया शब्द इण्डस से
निकला है जिसे संस्कृत में सिंधु कहा जाता है।
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लगभग 2500 वर्ष पूर्व उत्तर-पश्चिम की ओर से आने वाले ईरानियों और यूनानियों ने सिधु को
हिदोस अथवा इंदोस और इस नदी के पूर्व में स्थित भूमि प्रदेश को इण्डिया कहा।
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भरत नाम का प्रयोग उत्तर-पश्चिम में रहने वाले लोगों के एक समूह के लिए किया जाता था। इस
समूह का उल्लेख संस्कृत की आरंभिक (लगभग 3500 वर्ष पुरानी) कृति ऋग्वेद में भी मिलता है।
बाद में इसका प्रयोग देश के लिए होने लगा।
अतीत को जानने के स्रोत
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पुस्तक हाथ से लिखी होने के कारण पाण्डुलिपि कही जाती हैं। अंग्रेजी में ‘पाण्डुलिपि’ के लिए
प्रयुक्त होने वाला ‘मैन्यूस्क्रिप्ट’ शब्द लैटिन शब्द ‘मेनू’ जिसका अर्थ हाथ है, से निकला है।
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पाण्डुलिपियाँ प्रायः ताड़पत्रें अथवा हिमालय क्षेत्र में उगने वाले भूर्ज नामक पेड़ की छाल से विशेष
तरीके से तैयार भोजपत्र पर लिखी मिलती हैं। पाण्डुलिपियाँ मंदिरों और विहारों में प्राप्त होती हैं।
इन पुस्तकों में धार्मिक मान्यताओं व व्यवहारों, राजाओं के जीवन, औषधियों तथा विज्ञान आदि सभी
प्रकार के विषयों की चर्चा मिलती है।
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अभिलेख ऐसे लेख पत्थर अथवा धातु जैसी अपेक्षाकृत कठोर सतहों पर उत्कीर्ण किए गए मिलते
हैं। कभी-कभी शासक अथवा अन्य लोग अपने आदेशों को इस तरह उत्कीर्ण करवाते थे, ताकि लोग
उन्हें देख सकें, पढ़ सकें तथा उनका पालन कर सकें।
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कुछ अन्य प्रकार के अभिलेखों में राजाओं तथा रानियों सहित अन्य स्त्री-पुरुषों ने भी अपने कार्यों
के विवरण उत्कीर्ण करवाए हैं। उदाहरण के लिए प्रायः शासक लड़ाइयों में अर्जित विजयों का लेखा-
जोखा रखा करते थे।
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पुरातत्त्वविद् पत्थर और ईंट से बनी इमारतों के अवशेषों, चित्रें तथा मूर्तियों का अध्ययन करते हैं। वे
औजारों, हथियारों, बर्तनों, आभूषणों तथा सिक्कों की प्राप्ति के लिए छान-बीन तथा खुदाई भी करते
हैं। इनमें से कुछ वस्तुएँ पत्थर, पकी मिट्टी तथा कुछ धातु की बनी हो सकती हैं। ऐसे तत्त्व कठोर
तथा जल्दी नष्ट न होने वाले होते हैं।
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पुरातत्त्वविद् जानवरों, चिड़ियों तथा मछलियों की हिîóयाँ भी ढूँढ़ते हैं। इससे यह जानने में भी मदद
मिलती है कि अतीत में लोग क्या खाते थे।
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वनस्पतियों के अवशेष बहुत मुश्किल से बच पाते हैं। यदि अन्न के दाने अथवा लकड़ी के टुकड़े
जल जाते हैं तो वे जले हुए रूप में बचे रहते हैं।
प्राचीन इतिहास जानने के निम्नलिखित तीन महत्वूपर्ण स्रोत है-
- पुरातात्त्विक स्रोत,
- साहित्यिक स्रोत,
- विदेशी यात्रियों के विवरण
पुरातात्त्विक स्रोत:
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प्राचीन भारत के अध्ययन के लिए पुरातात्त्विक सामग्रियाँ सर्वाधिक प्रमाणिक है। इसके अन्तर्गत
मुख्यतः अभिलेख, सिक्के, स्मारक, भवन, मूर्तियाँ, चित्रकला आदि को सम्मिलित किया जाता है।
i) अभिलेख
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प्राचीन भारत के अधिकतर अभिलेख पाषण शिलाओं, स्तम्भों, ताम्रपत्रें, दीवारों तथा प्रतिमाओं पर
उत्कीर्ण हैं।
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सर्वाधिक प्राचीन अभिलेख मध्य एशिया के बोगजकोई नामक स्थान से लगभग 1400 ई-पू- में
मिले हैं। इस अभिलेख में इन्द्र, मित्र, वरूण तथा नासत्य आदि वैदिक देवताओं के नाम मिलते है।
- भारत में सबसे प्राचीन अभिलेख अशोक का है, जो 300 ई-पू- के लगभग हैं।
- अशोक के अधिकतर अभिलेख ब्राम्ही लिपि में है।
- केवल उत्तरी पश्चिमी भारत के कुछ अभिलेख खरोष्ठी लिपि में है।
- खरोष्ठी लिपी फारसी लिपि की भांति दाई से बाई की आरे लिखी जाती है।
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प्रारम्भिक अभिलेख (गुप्त काल से पूर्व) प्राकृत भाषा में है। किन्तु गुप्त तथा गुप्तोत्तर काल के
अधिकतर अभिलेख संस्कृत भाषा में है।
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कुछ गैर-सरकारी अभिलेख जैसे यवन राजदूत हेलियोडोरस का वेसनगर (विदिशा) से प्राप्त गरूण
स्तम्भ लेख जिसमें द्वितीय शताब्दी ई-पू- में भारत में भागवत धर्म के विकसित होने के साक्ष्य
मिले हैं।
- सर्वप्रथम 1837 में जेम्स प्रिंसेप ने ब्राम्ही लिपि में लिखित अवशेषों के अभिलेखों को पढ़ा था।
ii) सिक्के
- सिक्के के अध्ययन को मुद्राशास्त्र (न्यूमिसमेटिक्स) कहते हैं।
- पुराने सिक्के ताबाँ, चाँदी, सोना तथा सीसा धातु के बनते है।
- आहत सिक्के या पंचमार्क सिक्केः- भारत के प्राचीनतम सिक्के आहत सिक्के है।
- ठप्पा मारकर बनाये जाने के कारण भारतीय भाषाओं में इन्हें आहत मुद्रा कहते है।
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आरम्भिक सिक्कों पर मात्र चिन्ह मिलते है किन्तु बाद के सिक्को पर राजाओं और देवताओं के
नाम तथा तिथियॉ भी मिलती है।
- आहत मुद्राओं की सबसे पुरानी निधियाँ पूर्वी उत्तरी प्रदेश और मगध में मिली हैं।
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आरम्भिक सिक्के अधिकतर चाँदी के होते हैं जबकि ताँबे के सिक्के बहुत कम थे। ये सिक्के
पंचमार्क सिक्के कहलाते थे।
- आरम्भिक आहत सिक्को पर पेड़, मछली, साँड, हाथी, अर्द्धचन्द्र आदि आकृतियाँ बनी होती थी।
iii) मूर्तियां:
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भरहुत, बोधगया और अमरावती की मूर्ति कला में जनसाधारण के जीवन की सजीव झाकी मिलती
हैं।
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प्राचीन काल में मूर्तियों का निर्माण कुषाण काल से आरम्भ होता है। कुषाण, गुप्त तथा गुप्तोत्तर
काल में निर्मित मूर्तियों के विकास में जन सामान्य की धार्मिक भावनाओं का विशेष योगदान
रहा हैं।
- कुषाण कालीन गान्धार कला पर विदेशी प्रभाव है जबकि मथुरा कला पूर्णतः स्वदेशी है।
iv) स्मारक एवं भवनः
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प्राचीन काल में महलों और मंदिरो की शैली से वास्तुकला के विकास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।
दक्षिण पूर्व एशिया व मध्य एशिया से प्राप्त मंदिरों तथा स्तूपों से भारतीय संस्कृति के प्रसार पर
प्रकाश पड़ता है।
v) चित्रकला:
- चित्र कला से हमे उस समय के जीवन के विषय में जानकारी मिलती है।
- अजन्ता के चित्रें में मानवीय भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति मिलती है।
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चित्रकला में ‘माता और शिशु’ तथा ‘मरणासन्न राजकुमारी’ जैसे चित्रें से गुप्तकाल की कलात्मक
उन्नति का पूर्ण आभास मिलता है।
- हड़प्पा, मोहन जोदड़ो से प्राप्त मुहरों से उनके धार्मिक अवस्थाओं का ज्ञान होता है।
साहित्यिक स्रोत:
साहित्यिक स्रोत दो प्रकार के है-
- धार्मिक साहित्य
- लौकिक साहित्य या धर्मेत्तर साहित्य
1. धार्मिक साहित्य
- धार्मिक साहित्य में ब्राह्मण तथा ब्राह्मणेत्तर ग्रन्थ की चर्चा की जा सकती है।
- ब्राह्मण ग्रन्थों में वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, पुराण तथा स्मृति ग्रन्थ आते है।
- ब्राह्मोत्तर ग्रन्थों में बौद्ध एवं जैन साहित्यों से सम्बन्धित रचनाओं का उल्लेख किया जा सकता है।
i) ब्राह्मण साहित्य
वेदः
- ब्राह्मण साहित्य में सबसे प्राचीन ग्रन्थ ट्टग्वेद है।
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वेदों के माध्यम से प्राचीन आर्यो के धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन पार
प्रकाश पड़ता है।
- वेदों की संख्या चार है- ट्टग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद।
- वैदिक युग की सांस्कृति दशा के ज्ञान का एक मात्र स्रोत वेद है।
ब्राह्मण ग्रन्थ:
- इसकी रचना संहिताओं की व्याख्या हेतु सरल गद्य में की गयी है।
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ब्रह्म का अर्थ है- यज्ञ। अतः यज्ञ के विषयों का प्रतिपादन करने वाले ग्रन्थ ‘ब्राह्मण’ कहलाता है।
प्रत्येक वेद के लिए अलग ब्राह्मण ग्रन्थ है।
आरण्यक:
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यह ब्राह्मण ग्रन्थ का अन्तिम भाग है, जिसमें दार्शनिक एवं रचनात्मक विषयों का वर्णन किया
गया है।
उपनिषद्:
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उप का अर्थ है फ्समीपय् और निषद् का अर्थ है फ्बैठनाय्। अर्थात् जिस रहस्य विद्या का ज्ञान
गुरू के समीप बैठकर प्राप्त किया जाता है उसे ‘उपनिषद्’ कहते है।
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उपनिषद् आरण्यकों के पूरक एवं भारतीय दशर्न के प्रमुख सा्रेत है। वैदिक साहित्य के अन्तिम
भाग होने के कारण इन्हें वेदान्त भी कहा जाता ह।ै
वेदांग:
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इसकी संख्या छः है- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, ज्योतिष एवं छन्द। ये गद्य वे सूत्र रूप में
लिखे गये है।
सूत्र:
- वैदिक साहित्य को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए सूत्र साहित्य का प्रणयन किया गया।
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ऐसे सूत्र जिनमें विधि और नियमों का प्रतिपादन किया जाता है, कल्पसूत्र कहलाते है। कल्पसूत्र के
तीन भाग है- 1- श्रौत सूत्र 2- गृहय सूत्र 3- धर्म सूत्र
महाकाव्य:
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वैदिक साहित्य के बाद भारतीय साहित्य में रामायण और महाभारत नामक दो महाकाव्यों का
जिक्र आता है।
- पुराण
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भारतीय ऐतिहासिक कथाओं का सबसे अच्छा क्रमबद्ध विवरण पुराणों में मिलता है। पुराणों के
रचयिता लोमहर्ष माने जाते है।
ii) ब्राह्मणेत्तर साहित्य
बौद्ध साहित्य:
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भारतीय इतिहास के साधन के रूप में बौद्ध साहित्य का विशेष महत्त्व है। सबसे प्राचीन ग्रन्थ
त्रिपिटक है। त्रिपिटक इस प्रकार है- 1- सुत्तपिटक 2- विनयपिटक 3- अभिधम्म पिटक
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सुत्तपिटक के अन्तर्गत बुद्ध के धार्मिक विचारों और वचनों का संग्रह। इसे बौद्ध धर्म का
‘इनसाइक्लोपीडिया’ भी कहा जाता है।
- विनयपिटक के अन्तर्गत-बौद्ध संघ के नियमों का उल्लेख है।
- अभिधम्म पिटक के अन्तर्गत-बौद्ध दर्शन का विवेचन किया गया है (दार्शनिक सिद्धान्त)
जैन साहित्य:
- जैन साहित्य को आगम (सिद्धांत) कहा जाता है।
- जैन आगमों में सबसे महत्वपूर्ण बारह अंग है।
2. लौकिक साहित्य या धर्मेत्तर साहित्य
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लौकिक साहित्य के अन्तर्गत ऐतिहासिक ग्रन्थों, जीवनियाँ, कल्पना प्रधान तथा कल्प साहित्य के
वर्णनों का अध्ययन कर प्राचीन इतिहास को समझने का प्रयत्न किया जाता है।
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लौकिक साहित्य के अन्तर्गत ऐतिहासिक एवं अर्द्ध-ऐतिहासिक ग्रन्थों तथा जीवनियों का विशेष
रूप से उल्लेख किया जा सकता है।
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ऐतिहासिक रचनाओं में सर्वप्रथम उल्लेख ‘अर्थशास्त्र’ का किया जा सकता है। इसे सम्भवतः भारत
का पहला राजनीतिक ग्रन्थ माना जाता है।
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अर्थशास्त्र की रचना चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ कौटिल्य (चाणक्य, विष्णु
गुप्त) ने की थी।
- मौर्यकालीन इतिहास एवं राजनीति के ज्ञान के लिए अर्थशास्त्र ग्रन्थ एक प्रमुख स्रोत है।
- विदेशी यात्रियों के विवरण
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विदेशी यात्रियों में यूनानी, रोमन तथा चीनी यात्रियों को सम्मिलित किया जाता है। हेरोडोटस जिसे
‘इतिहास का पिता’ कहा जाता है, ने 5वीं सदी ई-पू- में ‘हिस्टोरिका’ नामक पुस्तक की रचना की
जिसमें भारत और फारस के संबंधों का वर्णन किया गया है।
- निर्याकस, आनेसिक्रिटस और अरिस्टोबलस ये सभी लेखक सिकंदर के समकालीन थे।
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सिकंदर के बाद के लेखकों में तीन राजदूतों- मेगस्थनीज डायमेंकस तथा डायोनोसिस के नाम
उल्लेखनीय है। जो यूनानी शासकों द्वारा मौर्य दरबार में भेजे गये है।
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प्लिनी के नेचुरल हिस्टोरिका से भारतीय पशुओं, पौधों और खनिज पदार्थों की जानकारी मिलती
है। यह पहली सदी ई. में लिखी गयी।
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चीनी यात्रियों के विवरण- चीनी लेखकों के विवरण से भी भारतीय इतिहास पर प्रचुर प्रभाव पड़ता
है। चीनी यात्री बौद्ध मतानुयायी थे।
- चीनी यात्रियों में सबसे महत्वपूर्ण है- फाहयान, हवेनसांग (युवान च्वांग) और इत्सिंग।
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अरबी यात्रियों के वृत्तान्त- अरब यात्रियों तथा लेखकों के विवरण से हमें पूर्व मध्यकालीन भारत
के समाज एवं संस्कृति के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है। अरबी व्यापारियों एवं लेखकों
में महत्त्वपूर्ण है- अल्बरूनी, सुलेमान एवं अलमसूदी।
फारसी यात्री यात्रवृतान्त
फिरदौसी शाहनामा
मिनहाज-उस-सिराज तबकात-ए-नासिरी
जियाउद्दीन बरनी तारीख-ए-फिरोजशाही
रोमन एवं यूनानी यात्री यात्र वृतान्त
मेगास्थनीज इण्डिका
टॉलमी ज्योग्राफी (यूनानी भाषा)
अज्ञात लेखक पेरिप्लस आफ द एरीथ्रियन सी
प्लिनी नेचुरल हिस्टोरिका (लैटिन भाषा में)
अतीत
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अलग-अलग समूह के लोगों के लिए इस अतीत के अलग-अलग मायने थे। उदाहरण के लिए
पशुपालकों अथवा कृषकों का जीवन राजाओं तथा रानियों के जीवन से तथा व्यापारियों का जीवन
शिल्पकारों के जीवन से बहुत भिन्न था।
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आज भी देखते हैं, उस समय भी देश के अलग-अलग हिस्सों में लोग अलग-अलग व्यवहारों और
रीति-रिवाजों का पालन करते थे।
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आज अंडमान द्वीप के अधिकांश लोग अपना भोजन मछलियाँ पकड़ कर, शिकार करके तथा फल-
फूल के संग्रह द्वारा प्राप्त करते हैं। इसके विपरीत शहरों में रहने वाले लोग खाद्य आपूर्ति के लिए
अन्य व्यक्तियों पर निर्भर करते हैं।
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उस समय शासक अपनी विजयों का लेखा-जोखा रखते थे। यही कारण है कि उन शासकों तथा
उनके द्वारा लड़ी जाने वाली लड़ाइयों के बारे में काफी कुछ जानते हैं। जबकि शिकारी, मछुआरे,
संग्राहक, कृषक अथवा पशुपालक जैसे आम आदमी प्रायः अपने कार्यों का लेखा-जोखा नहीं रखते थे।
पुरातत्त्व की सहायता से हमें उनके जीवन को जानने में मदद मिलती है।
तिथियों का महत्त्व
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वर्ष की यह गणना ईसाई धर्म-प्रवर्तक ईसा मसीह के जन्म की तिथि से की जाती है। 2000 वर्ष
कहने का तात्पर्य ईसा मसीह के जन्म के 2000 वर्ष के बाद से है।
- ईसा मसीह के जन्म के पूर्व की सभी तिथियाँ ई-पू- (ईसा से पहले) के रूप में जानी जाती हैं।
महत्त्वपूर्ण तिथियाँ
- कृषि का आरंभ (8000 वर्ष पूर्व)
- सि्ांधु सभ्यता के प्रथम नगर (4700 वर्ष पूर्व)
- गंगा घाटी के नगर, मगध का बड़ा राज्य (2500 वर्ष पूर्व)
- वर्तमान (लगभग 2000 वर्ष पूर्व)
इतिहास और तिथियाँ
- अंग्रेजी में बी.सी. (हिदी में ई.पू.) का तात्पर्य ‘बिफोर क्राइस्ट’ (ईसा पूर्व) होता है।
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ए.डी. (हिदी में ई.) ‘एनो डॉमिनी’ नामक दो लैटिन शब्दों से बना है तथा इसका तात्पर्य ईसा
मसीह के जन्म के वर्ष से है।
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कभी-कभी ए.डी. की जगह सी.ई. तथा बी.सी. की जगह बी.सी.ई. का प्रयोग होता है। सी.ई.
अक्षरों का प्रयोग ‘कॉमन एरा’ तथा बी.सी.ई. का ‘बिफोर कॉमन एरा’ के लिए होता है।
- भारत में तिथियों के इस रूप का प्रयोग लगभग दो सौ वर्ष पूर्व आरंभ हुआ था।
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कभी-कभी अंग्रेजी के बी-पी- अक्षरों का प्रयोग होता है जिसका तात्पर्य ‘बिफोर प्रेजेन्ट’ (वर्तमान से
पहले) है।
अभ्यास प्रश्न
Q.1
गंगा नदी के दक्षिण में इसकी सहायक नदी सोन के आस-पास का क्षेत्र प्राचीन काल में किस नाम से जाना जाता था?
- अवन्ति
- वज्जि
- काशी
- मगध
Q.2
भारत देश के नाम के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
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लगभग 2500 वर्ष पूर्व उत्तर-पश्चिम की ओर से आने वाले ईरानियों और यूनानियों ने सिंधु
को हिंदोस अथवा इंदोस तथा इस नदी के पूर्व में स्थित भूमि प्रदेश को ‘इंडिया कहा।
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‘भरत’ नाम कबा प्रयोग उत्तर-पश्चिम में रहने वाले लोगों के एक समूह के लिये किया जाता
था। इस समूह का उल्लेख संस्कृत भाषा की आरंभिक कृति ‘ट्टग्वेद’ में भी मिलता है।
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिएµ
- केवल 1
- केवल 2
- 1 और 2 दोनों
- न तो 1 और न ही 2
Q.3
पाण्डुलिपियों के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है?
- अतीत में हाथ से लिखी गई पुस्तकें पाण्डुलिपि कहलाती थीं।
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अंग्रेजी में पाण्डुलिपि के लिये मैन्यूस्क्रिप्ट शब्द का प्रयोग होता है जो लैटिन भाषा के शब्द
‘मेनू’, (जिसका अर्थ ‘हाथ’ है) से निकला है।
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पाण्डुलिपियाँ ताड़ के पत्तों को काटकर अथवा हिमालयी क्षेत्र में उगने वाले भूर्ज नामक पेड़ की
छाल में विशेष तरीके से तैयार भोज पत्र लिखी जाती थीं।
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पाण्डुलिपियाँ केवल मंदिरों और बिहारों में प्राप्त होती हैं, जो केवल संस्कृत भाषा में लिखी गई
हैं।
Q.4
अभिलेखों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये
- ऐसे लेख जो केवल पत्थरों पर उत्कीर्ण किये जाते थे, अभिलेख कहलाते हैं।
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कभी-कभी शासक अथवा अन्य लोग अपने आदेशों को इस तरह उत्कीर्ण करवाते थे ताकि
लोग उन्हें देख व पढ़ सकें तथा उनका पालन कर सकें।
उपर्युक्त कथनों में कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
- केवल 1
- केवल 2
- 1 और 2 दोनों
- न तो 1 और न ही 2
Q.5
अशोक का कांधार से प्राप्त अभिलेख निम्नलिखित में से किन लिपियों में लिया गया है?
- अरामाइक और ब्राह्मी
- यूनानी और ब्राह्मी
- देवनागरी और तमिल
- यूनानी और अरामाइक
उत्तर